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सरसी अंतरा को देखकर बरामदे में से दौड़ी चली आयी, जैसे कि उसे कोई किनारा मिल गया हो। दौड़कर अपंग, लंगडा, लाठी के सहारे चलने वाले अंतरा को बोली थी देखो तो, कैसे उस आदमी ने मुझे थाना में लाकर डाल दिया है ?” बोलते-बोलते रो पड़ी थी सरसी।
बहुत ही गुस्से में आया था घर से अंतरा, जब उसने सुना था कि सरसी पुलिस थाने में बैठी है। घर में खाने को एक दाना भी न था, न तो लोटा था, न कोई थाली। सिर्फ एक कटोरा पड़ा था, वह भी स्टील का। जिस की कोई कीमत नहीं थी। नूरीशा के पास गया था कुछ उधार लेने के लिये, पर उसने साफ-साफ मना कर दिया। कह रहा था जा पहले कोई पीतल का घड़ा या गमला लेके आ। फिर पैसे ले जाना।पीतल के घड़े में सरसी की जान थी। मायके से मिला था इसलिये प्रलय होने पर भी वह हाथ से उसे जाने नहीं देना चाहती थी। बालू और राख से रगड-रगड़कर चकचक करके रखती थी, सोने के जैसे चमकता रहता था। अंतरा उसको नूरीशा के पास बंधक रखना नहीं चाह रहा था। लेकिन खाली हाथ पुलिस थाने जाने से फायदा भी क्या? एक पैसे का भी काम नहीं बनेगा।
उस दिन किंसिडा में साप्ताहिक हाट था। जिस दिन हाट लगता था, उस दिन वह घर से जल्दी निकलती थी। रहमन मियां, जिस चबूतरे पर गोश्त काटता था, उसको पहले से धोकर साफ करती थी। उसके बाद वह बाग-बगीचे के काम में लग जाती थी। लौटते वक्त रहमन मियां, बची-खुची आंतडिया-वातड़िया, थोडी-बहुत दे देता था सरसी को। मगर इस गोश्त के लिये किसिंडा जाती थी, ऐसी बात नहीं थी। वास्तव में उस दिन मुर्शिदाबादी पठान लोग, हाट में आकर गाय-मवेशियों की खरीद-फरोख्त का सौदा तय करते थे। किस घर में बूढ़ी गाय है ? तो किस घरमें बछड़ा ? खरीदने व बेचने की कीमत वहीं पर तय कर ली जाती थी। सरसी उस पठान लड़के को चारों तरफ खोजती थी।
अंतरा को मालूम है हर साप्ताहिक हाट से लौटते वक्त सरसी पेट भरकर महुली पीकर लौटती थी। इसलिये खरीदे हुये चावल व गोश्त को चूल्हे के पास फेंककर सो जाती थी। अंतरा गाली देते हुये चूल्हा जलाकर खाना पकाता था। वह समझता था सरसी के दुःख को। परबा की खोजबीन से निराश होकर वह महुली पी लेती थी। एकाध-घंटा बेहोश होने के बाद उसका मन शांत हो जाता था। जवान लड़की घर से चली गयी थी, तो उसका दिल नहीं रोयेगा तो किसका रोयगा ? मगर पुलिस थाने में सरसी का क्या काम ? सचमुच, वह उसने पठान लड़के को पकड़ नहीं लिया है तो ?
बिरंची बगर्ती की साइकिल चोरी हो गयी थी, इसलिये थाने में प्राथमिकी रपट दर्ज कराने गया था। वहाँ उसकी मुलाकात सरसी से हो गयी। आकर बोला अरे चमार ! तेरे घर वाली तो थाने में बैठी है।बिरंची बगर्ती ग्वाला है। गाय मवेशियों के साथ जीते हैं, साथ मरते हैं। कितनी बार अंतरा ने उनके गुवालों से मरी गायें और मवेशियों को उठाया था। इसी कारण से कुछ जान-पहचान थी नहीं तो इन ऊंची जाति वाले लोगों का क्या काम, जो खबर देकर जायेंगे ?
अंतरा थाना-पुलिस की बात सुनकर पहले-पहल डर गया था। बाद में, रुपये जुगाड़ करने के लिये इधर-उधर जिसके-तिसके पास गया था। बस्ती के सभी लोग तो उसी के तरह थे। उसको कौन उधर देता ? शा के पास गया तो उसने कोई चीज गिरवी रखने की बात कही। कहीं से कुछ भी उधार नहीं मिला। तकदीर में जो होगा, वही सोचकर थाने पहुँचा था वह।
रास्ते भर अंतरा इधर-उधर की बातें सोच रहा था। बीच-बीच में थानेदार, बंधुआ मजदूरों करने गये लड़को को दूसरे राज्यों से छुड़ाकर लाते थे। इसी तरह कहीं उसका डाक्टर लौटकर नहीं आया है तो ? नहीं तो, यह औरत जरुर कोई झगड़ा-झंझट करके थाना में बैठी होगी। यह औरत थाने में बैठी है, सुनकर आस-पडोस के लोग कानाफूसी करने लगेंगे। ऐसे तो सरसी को लेकर लोग इतनी बातें बोलते रहते हैं ? इसके अलावा, यह एक बात और जुड़ जायेगी।
पता नहीं, कहीं गवाही नहीं देने गयी है तो ? साली को ! क्या पता नहीं है ? पुलिस थाने जाने से बर्बाद हो जायेंगे। उसकी लंगड़ी टाँग को मार-मारकर पुलिस ने और पंगु बना दिया था। यह क्या भूल गयी है वह औरत ? सरसी अंतरा को पकड़कर रोने लगी। रुक, पहले मैं पता करके आता हूँ कि बात क्या है ?” एक एक कदम चलकर वह बरामदे में पहुँचा। दरोगा बाहर में खड़ा था। अंतरा ने उसका सिर झुकाकर जुहार किया था।
क्या हुआ ?” बहुत संक्षिप्त प्रश्न पछा था दरोगा ने।
ये मेरी घर वाली है, इसे थाने में क्यों बुलाये हो ?”
क्या वह पगली, तुम्हारे घर वाली। देखो, उसने क्या कर दी उस आदमी की हालत ? पत्थर मार-मारकर उस आदमी का सिर फोड़ दिया। देखो, कैसे खून बह रहा है उसके सिर से।
जी, इसका दिमाग काम नहीं कर रहा है।
तुम भी ऐसे बोल रहे हो।सरसी ने अचरज के साथ अंतरा को पूछा।
घर में बाँधकर क्यों नहीं रखते हो उसको ? पागल खाने में क्यों नहीं डाल दिया ?” व्यंग्य करते हुये दरोगा बोला।
जी ?”
थाने में कुछ दिन रखोगे तो अपने आप दिमाग ठीक हो जायेगा।
ऐसे मत बोलिये, बाबू। मैं उसको छुडाने आया हूँ।
तुम्हारे बोलने से क्या छोड़ देंगे ?”
ना, ना, आपकी दया पर है, मालिक
मेरी दया करने से भी उसे नहीं छोड़ा जायेगा। समझे क्या ?”
अब सरसी ने बोलना शुरु किया। उस आदमी ने मुझे जमीन पर क्यों पटक दिया ?
अब चुपचाप बैठा हुआ आदमी उर्दू और बांग्ला मिश्रित भाषा में बोला।
तुम मुझे हाट में खींच-तान क्यों रही थी ? कौन परबा है ? मुझे क्या पता ? हाट में मेरा लुंगी खींचकर कितना तंग किया ? बदजात् औरत ! मुझे चिकुटी काटकर, दाँतों से काटकर पत्थर से मारकर मेरा क्या हाल की है! देखो, साहिब, इस पगली को मत छोड़ना।
चुप,” खूब जोर से चिल्लाकर बोला दरोगा साले, यहाँ सब नाटक लगाकर रखे हैं। पीटूँगा अभी दोनों को, माँ-बाप सभी याद आ जायेगा।
तब दरोगा बहुत व्यस्त था। थानेदार नहीं था। शाम को त्रिनाथ मेलेकी पूजा होगी। गाँजा के लिये एक आदमी को भेजा था, अभी तक लौटा नहीं था। कहाँ से यह एक और झमेला ? जिसमें एक भी पैसे की कमाई-धमाई नहीं है। गुस्से से दरोगा कह रहा था जाओ, पहले रुपया लेकर आओ, फिर मैं देखता हूँ।
खून से लथ-पथ आदमी ने कहा सर, मेरा दरखास्त क्यों दर्ज नहीं की ?”
तेरा घर कहाँ है ? बोल पहले। तुम कहाँ से आये हो ? चोर हो, चांडाल हो। तुमने क्या किया था ? पहले बता। जरुर, तुमने कुछ किया है नहीं तो यह औरत कोई शिकायत करने आती ?”
मैं क्यों उसकी बेटी भगा ले जाऊँगा ? मैं तो उसकी बेटी का नाम तक नहीं जानता, जनाबबड़े दुखी मन से बोल रहा था वह मुसलमान आदमी।
मेरा अभी बहुत काम है, तुम्हारा फैसला थानेदार साहब करेगा, ऐसे ही बैठे रहो।
दरोगा के पांव पकड लिये थे अंतरा ने। जी,मैं एक गरीब आदमी हूँ, थाना-कचहरी के लिये मेरे पास पैसा नहीं है ।
पैसा नहीं है, तो जुगाड़ करो। जाओ, आज थाना में त्रिनाथ-मेलाकी पूजा है। प्रसाद के लिये कुछ जुगाड़ कर देना थानेदार साहब को कहकर तुम्हारी औरत को छुडवा दूँगा।
दूर में बैठा हुआ पठान लड़का यह सब नाटक देख रहा था। उसको समझ में आ गया था कि थाना आकर उसने कोई अच्छा काम नहीं किया है। यह राक्षस, उससे कुछ हासिल किये बिना नहीं छोडेगा। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था और वह वहाँ से चुपचाप खिसकना चाह रहा था। यह बात दरोगा ने भांप ली थी। बोला अरे, तुम कहाँ भाग रहे हो ? अरे, मैं तुमको पूछ रहा हूं, इस की लड़की को लेकर कहाँ भागा था ? कहाँ रखा है इसको ? साले, इसकी लड़की को लेकर बेच दिया और अभी ऐसे बैठा है, जैसे कुछ भी मालूम नहीं।
मुझे कुछ भी मालूम नहीं। मैं तो हाट में घूम रहा था। मुझे देखकर इस बूढ़ी ने खींचातानी शुरु कर दी। देखिये ना, कैसे पत्थर मारकर, कैसे चिकुटी काटकर घायल कर दिया है !
उसी बीच, एक आदमी दरोगा को कागज की पुडिया देकर चला गया। पुडिया को खोलकर उसे सूंघने लगा। फिर मोड़कर अपनी जेब में रख दिया। फिर दोनों प्रतिपक्षों की तरफ देखकर, कर्कश आवाज में बोला जाओ, भागो यहाँ से। साले, दिमाग चाटने के लिये कोई नहीं मिला तो, यहाँ आ गये।दरोगा अपना माल पाकर भीतर ही भीतर खुश हो रहा था। उसकी खुशी या गुस्सा से उनका कोई लेना-देना नहीं था। इसके भागोबोलने से ऐसा लग रहा था जैसे किसने पिंजरे का द्वार खोल दिया हो और कह रहा हो जाओ,बहुत बड़ी विपत्ति से निकल गये थे जैसे। पठान ने और नहीं बोला कि मेरी रिपोर्ट लिख दिजीये। अंतरा बार-बार दरोगा का पैर पड़कर आभार व्यक्त कर रहा था।
अब दोनों को एक दूसरे से किसी भी प्रकार की कोई गिला-शिकवा नहीं था। जाने की इजाजत मिल जाने के बाद, दोनों पक्ष बरामदा से उतर कर धीरे-धीरे चले गये। रास्ते भर अंतरा सरसी को गाली दे रहा था। तुम एक दिन मुझे भी मरवायेगी। ऐसे काम करने को तुझे कौन कहता है ? आज तो तू थाना में बैठी, कौन तेरा साथ देने आया ? गाँव से इतनी सारी लड़किया भाग रही है, पता भी नहीं चलता। क्या वे सब पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवा आ रहे हैं ? साली, पगली। जेल में कितना कष्ट होता है, तुझे क्या मालूम ? मार-मारकर कमर तोड़ देंगे। तो उठ नहीं पायोगी। यह बाबू तो दयालु था, नहीं तो देखती डंडा से मार-मारकर भुरता बना देता।
तुमने जैसा काम किया है। मैं लोगो को कैसे अपना मुंह दिखाऊँगा ? लोग कहेंगे कि अंतरा की औरत को पुलिस-थाने में ले गया था। तू और कितना बदनाम कराकर छोडेगी, बोल तो ?”
सरसी के दिमाग में अंतरा की ये सारी बातें घुस नहीं रही थी। बक-बक करता रहता है, करने दो। वह तो थी-एक अलग राज्य में। वह मन ही मन में दो तारों को जोड़ रही थी, गलती से किसी निर्दोष को पत्थर मारकर सिर तो नहीं फोड़ दी है। पता नहीं, कितने दिनों बाद उस पठान लड़के मुराद को देखा था सरसी ने। हाट में परबा के साथ हंस-हंस कर बातें कर रहा था. उस बीच वह ठीक से लडके का चेहरा याद नहीं कर पा रही थी। लेकिन गले के पास वह काला तिल ? पठान लड़के के गले के पास ऐसे ही एक बड़ा काला तिल था। वह किसको पूछेगी ? क्या सच और क्या झूठ ? कौन उसको सच बात बतायेगा ? बड़ा असहाय महसूस कर रही थी। इतने दिनों बाद वह लड़का उसके हाथ में आया था। बेटी की खबर मिलने से पहले ही वह लड़का हाथ से चला गया। साथ में अंतरा नहीं होता तो शायद अभी भी उसका पीछा करती। उसके हाथ-पैर पकडती, पूछती मेरी बेटी को एक बार, ले आ, मेरे बेटे। बहुत दिनों से मैं उसको देखने के लिये तरस गयी हूँ।पता नहीं वह लड़का कल सबेरे-सबेेरे छुप-छुपकर किसिंडा छोडकर चला तो नहीं जायेगा ?
सरसी की छाती भारी लग रही थी। अपने किये के लिये वह पछता रही थी। पश्चाताप की आग में जलते हुये भी वह अंतरा के सामने सब बातों को उगल नहीं पाती थी। उसको लग रहा था कि उसकी परबा ने उसके लिये ही घर छोडा है. चार-छः दिन तक भूख से बिलखती हुयी बच्ची घर से बाहर पांव निकाली, तो और लौटी ही नहीं। अगर सरसी मिट्टी के अंदर अपनी संचित पैसों को निकाल कर अपनी बेटी को दे दी होती, तो क्या वह भूख के मारे घर छोड़ चली जाती ?
सरसी याद करने लगी। उस समय उसके दिन का आधा समय होश में, तो आधा समय बेहोशी में कट रहा था। दीवार गिर गयी थी। लेकिन उसके हाथ-पाँव में इतनी ताकत नहीं थी, कि वह दीवार को ठीक कर पाती, पानी की बड़ी-बड़ी धारायें बह रही थी घर के भीतर। पानी ही नहीं बह रहा था, बहती जा रही थी उसकी बेटी। हाय रे ! तकदीर ! उसकी गोदी सूनी करके चार-चार बच्चे उड़ चले गये। ये हीन जीवन रखकर क्या फायदा ? और अब किसके लिये यह घर संसार ? किसके लिये करना-धरना ? ये इन्सान के बच्चे ना होकर, चिडियायों के बच्चे हुये होते तो इतना गम नहीं होता। पंख निकलते ही, सरसी मान लेती कि कुछ ही दिनों में उसके बच्चे छोडकर चले जायेंगे।
सरसी ध्यान नहीं दे रही थी अपने आदमी की तरफ। क्या बोल रहा है ? क्या नहीं बोल रहा है ? इतना समय तक वह कुछ भी नहीं सुन रही थी। उसकी सोच में से उभर कर आये थे जरा से भाव, मुँह की भाषा बनकर हाँ रे । जरा सुनो तो, हमारे बच्चे चिड़ियों के जैसे थे ना ?”
बकर-बकर करने वाला अंतरा एकदम चुप हो गया था। वे दोनों बस्ती के पास पहुँच गये थे। घर पहुँचते ही सरसी ने मिट्टी खोदकर हांडी बाहर निकाली थी। अंतरा को विस्मित कर उसके सामने फोड़ दी, छोटे मुंह से उसकी बेटी को निगल लेने वाली हांडी को। बोली थी
ले जा, यह पैसा और किस काम में लगेगा ? ले चावल खरीद लेना, दाल खरीद लेना, खैनी खरीद लेना, बीडी खरीद लेना, कलंदर के पास चले जाना। ये सब तुम्हारे है, ले जाओ।
अंतरा के पेट में एक दाना भी नहीं पड़ा था तब तक। भूख लग रही थी। सरसी को लेकर चिन्ता से मन भारी लग रहा था। दिल के अंदर से जरा-सी दारु पीने के लिये तड़प पैदा हो रही थी। उसके पाँव थकावट से सुन्न हो जा रहे थे। फिर उसमें से एक पैसा भी उसने नहीं उठाया। यह सारा पैसा परबा के लिये था। इस औरत ने अपना पेट काट-काटकर, मन मारकर इकट्ठा की थी यह पैसा। उसे फूट-फूटकर रोने को मन कर रहा था। वह लाठी पकड़ कर निकल आया था बाहर और बैठ गया था बरामदे में।

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